ख़ूबसूरत है आज भी दुनिया - आज का समय इतिहास के सर्वाधिक संकटपूर्ण कालखण्डों में से एक है। उपभोक्तावादी अपसंस्कृति तथा बाज़ारवाद का अजगर हमारे सम्बन्धों की सारी ऊर्जा तथा ऊष्मा को सोखने लगा है। भूमण्डलीकरण तथा उदारवाद की आँधी ने मानवीय समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद ने इस विषैले वातावरण को रक्तरंजित कर इसे और अधिक भयावह बना दिया है। ऐसी अराजक परिस्थितियों तथा दमघोंटू वातावरण में केवल सृजनशील रचनाकार ही अपने क़लम जैसे नाज़ुक हथियार के साथ युद्ध के मैदान में डटे हैं। इन क़लमकारों की अदम्य जिजीविषा तथा अटूट आस्था ही समाज का सम्बल बनती है। 'ख़ूबसूरत है आज भी दुनिया' संग्रह की ग़ज़लों में इन्हीं विषम तथा विकट स्थितियों में फँसे आम आदमी की आह और कराह के साथ उसके सपने, उसकी आशा-निराशा तथा उसके संघर्ष को वाणी देने की कोशिश की गयी है। इस सारे कलुष तथा कालिमा के बावजूद दुनिया का नैसर्गिक सौन्दर्य हमें जीने के लिए बाध्य करता है। संसार की इसी ख़ूबसूरती को बनाये रखने तथा बचाये रखने के लिए प्रत्येक सृजनशील साहित्यकार अपनी तरह से प्रयास करता है। इन ग़ज़लों की प्रत्येक काव्य-पंक्ति में मानवता के हाहाकार के पार्श्व से उठते हुए मानव-मूल्यों के जयकार का स्वर भी सुनायी देगा। इसी घटाटोप अँधियारे को चीरकर आस्था, विश्वास तथा संघर्षशीलता का उजास आपको आग पर चलने के लिए विवश करता रहेगा।
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