Kavi Parampara : Tulsi Se Trilochan

Hardbound
Hindi
9789326351560
5th
2018
262
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कवि परम्परा तुलसी से त्रिलोचन - प्रख्यात समालोचक प्रभाकर श्रोत्रिय की 'कवि-परम्परा' विभिन्न युगों की कविता को ताज़गी और मार्मिकता से आधुनिक पटल पर रखती है। इस पुस्तक में शामिल 21 कवि भक्ति-युग से नयी कविता युग तक का लम्बा काल-विस्तार समेटे हैं। जहाँ एक ओर भक्तिकाल के तुलसी, कबीर, सूर, मीरा हैं, वहीं मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी जैसे राष्ट्रीय धारा के कवि और प्रसाद, निराला, पन्त, महादेवी सरीखे छायावादी कवि हैं। इधर प्रगतिवादी धारा के नागार्जुन, त्रिलोचन हैं तो उधर हैं नयी कविता के अज्ञेय, मुक्तिबोध, शमशेर, नरेश, भारती, वीरेन्द्रकुमार जैन, राम विलास शर्मा जैसे दिग्गज कवि। अलग-अलग युग के अलग-अलग धारा के, व्यक्तित्ववान कवियों के 'शब्दार्थ' की पहचान करते हुए आलोचक ने एक ऐसा जीवन्त, रंगारंग संसार रचा है, जिससे न तो पुराना कवि 'कल' का लगता है, न आज का कवि अगले और पिछले 'कल' से कटा हुआ, अकेला। मानो कविता अविरल जीवन-धारा है। इस पुस्तक में न कहीं अकादमिक जड़ पाण्डित्य है, न संवेदनहीन निष्प्राण बर्ताव। भाषा-शैली के टटकेपन से हर रचनाकार पुष्प की तरह खिल उठा है; गोया नये पाठक को जिज्ञासा और रुचि का वैविध्यपूर्ण संसार मिल गया हो; एक सलाहकार दोस्त जो उसकी संवेदना, चेतना और विवेक पर चढ़े मुलम्मे आहिस्ता-आहिस्ता उतारता है। भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है कि ऐसी आलोचना कृति वह पाठक को सौंप रहा है।

प्रभाकर श्रोत्रिय (Prabhakar Shrotriya)

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