कपटपासा - अपने समय का कोई भी बड़ा कवि अपनी रचनाओं के माध्यम से मनुष्य के केन्द्रीय प्रश्नों से साक्षात्कार करता और कराता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त ओड़िया कवि सीताकान्त महापात्र की कविताएँ भी मनुष्य की गहरी संवेदनाओं और उसके अस्तित्व की जटिलताओं को निरन्तर अभिव्यक्त करती हैं। उनके इस नये संग्रह 'कपटपासा' की कविताओं में भी मानवीय चिन्ताओं के स्वर अपने वैभव के साथ उपस्थित हैं। 'कपटपासा' की कविताओं में सघन बिम्बों और भाषा-शैली के माध्यम से परम्पराओं का सजग मूल्यांकन और आधुनिक जीवन मूल्यों का प्रखर विश्लेषण तो है ही, मिट्टी-पानी की अन्दरूनी खनक और गन्ध को भी सहज ही महसूस किया जा सकता है। डॉ. महापात्र का विश्वास है कि अतीत और भविष्य को मिलाकर वैकल्पिक वास्तविकता का सृजन कविता के ज़रिये ही सम्भव है। सारी हताशा, दुःख और यन्त्रणाओं में उनकी कविता मनुष्य की स्थिति के गम्भीरतम आनन्द की तलाश है। उनका यह संग्रह आधुनिक भारतीय कविता के इसी प्रमुख स्वर का अन्यतम उदाहरण है।
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