जन्नत जाविदाँ - उमा का यह उपन्यास ज़िन्दगी के तनावों तथा दबावों के साथ ही, ज़िन्दगी में निरन्तरता को रेखांकित करता है। बदलते वक़्त में ज़िन्दगी की ज़रूरतें बदल गयी हैं, बदली हैं मान्यताएँ भी। एकल अभिभावक की फ़िक्र के साथ ही, एक बच्चे की सोच को आज के परिप्रेक्ष्य में उभारा गया है। साथ ही लेखिका ने अपने भाषाई मुहावरे में उपन्यास को पठनीय और प्रभावशाली बनाने का प्रयत्न किया है। उमा अपने इस उपन्यास में नारी जीवन के सतत संघर्ष को पूरी ईमानदारी से उद्घाटित करती हैं। प्रेम में धोखा, टूटन का होना कतई अस्वाभाविक नहीं है। विषयवस्तु के समानान्तर उपन्यास के कुछ ऐसे उजले चरित्र हैं जो पूरी कथा में नया रंग भरते प्रतीत होते हैं, जिसमें स्त्री और पुरुष के मनोविज्ञान को शिद्दत से उजागर किया है। उमा युवा हैं और उन्हें लेखन की परम्पराओं की गहरी पहचान है। यही वजह है कि वे अपने उपन्यास के पूरे घटनाक्रम को जीवन से गहरे तक जोड़कर रखती हैं। उमा एक सजग पत्रकार भी हैं और वे अपने आसपास की चीज़ों को सूक्ष्मता के साथ अवलोकन करती हैं और अपनी कथा का हिस्सा बनाती हैं। निश्चित ही यह उपन्यास हिन्दी कथा साहित्य में अपनी जगह बनायेगा।
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