गोमटेश गाथा - श्रवणबेलगोल (कर्नाटक) में वियगिरि पर स्थित 57 फुट उत्तुंग, गोमटेश्वर बाहुबली की विश्ववन्द्य विशाल मूर्ति के प्रतिष्ठापना इतिहास को रूपायित करने वाली एक सशक्त, श्रेष्ठ साहित्यिक कृति है यह 'गोमटेश गाथा'। श्रवणबेलगोल का, यहाँ के चन्द्रगिरि और विन्ध्यगिरि का सम्पूर्ण सांस्कृतिक वैभव कवि हृदय की सहज आत्मानुभूति के विविध रंगों से रंजित होकर समुज्व्ूल और जीवन्त हो उठा है। चक्रवर्ती भरत और अप्रतिम वीर बाहुबली की पौराणिक कथा को इस कृति में जो मनोवैज्ञानिक आधार मिला है, वह निश्चय ही लेखक की साहित्यिक प्रतिभा का एक सुन्दर निदर्शन है। चिन्तन की अजस्र प्रवहमान धारा से अनुप्राणित पुराण एवं इतिहास के दुर्लभ पक्ष ने प्रसाद गुणमयी भाषा-शैली के माध्यम से जो सहज अभिव्यक्ति पायी है, निश्चय ही वह एक सहृदय लेखक की सिद्धहस्त लेखनी से ही सम्भव था। उपन्यास के शिल्प में ढली हुई इस कृति का एक एक अध्याय चिन्तन की गरिमा, कल्पना की परिष्कृति और शैली की मोहकता के कारण अद्भुत बन पड़ा है। मान लें कि यह रचना भी गुल्लिकाय फल का एक लघुपात्र है जिसमें भावना और भक्ति का सागर हिलोरें ले रहा है। यहाँ सब कुछ विलक्षण, प्रतीयमान और मुग्धकारी है। पाठक ने कहीं एक बार जाने-अनजाने गोता लगाया कि बस पूरी तरह निमज्जित होकर ही तट के छोर पर पहुँचता है। वहाँ से उसके चिन्तन की नयी भूमिका प्रारम्भ हो जाती है, जिस पर विचरण के लिए उसके पग अनायास बढ़ते चले जाते हैं। प्रस्तुत है इस महान कृति का नया संस्करण, नयी साज-सज्जा के साथ।
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