भारतीय लोक कथाओं पर आधारित उर्दू मसनवियाँ - ग़ज़ल के बाद हमारे शायरों ने जिस विधा पर सबसे ज़्यादा अभ्यास किया, वह मसनवी ही है। उर्दू की दूसरी विधाओं की तरह हमारी मसनवियाँ भी उस ग्रहण व स्वीकार, मेल-जोल और साझेदारी का पता देती हैं जो हिन्दुओं और मुसलमानों के आपसी मेल-जोल के बाद यहाँ सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर भी सक्रिय रहीं। संयोग की बात है कि उस ज़माने में जब उर्दू शायरी अभी अपने विकास की मंज़िलें, मज़हब व तसव्वुफ़ के सहारे तय कर रही थी, उर्दू की सर्वप्रथम मसनवी में एक भारतीय क़िस्से को विषयवस्तु बनाया गया। यह मसनवी बह्मनी दौर के एक शायर निज़ामी से सम्बद्ध की जाती है। और उसमें क़दमराव पदमराव का स्थानीय क़िस्से का वर्णन है। यह मसनवी सम्भवतः अहमद शाह सालिस बह्मनी (865-867 हि.) के ज़माने में लिखी गयी। प्राचीन मसनवियों में साधारणत: क़िस्से कहानियाँ बयान की जाती थीं, जिनका गहरा सम्बन्ध राष्ट्रीय परम्पराओं, धर्म और सामाजिक जीवन से होता था। हमारी मसनवियाँ चूँकि साझा संस्कृति और मिले-जुले सामाजिक जीवन के प्रभाव में लिखी गयीं, इसलिए उनमें इस्लामी क़िस्से कहानियों के अलावा भारतीय लोक कथाओं और लोक परम्पराओं से प्रभावित होने का रुझान भी पाया जाता है। इसी रुझान का वस्तुपरक और शोधपरक दृष्टि से जाँच परख करना प्रस्तुत पुस्तक का विषय है।
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