Bharat Mein Mahabharat

Hardbound
Hindi
9789326352529
2nd
2016
638
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भारत में महाभारत - महाभारत विश्व का ऐसा अद्वितीय महाकाव्य है जिसकी महाप्राणता ने असंख्य रचनाओं को जन्म दिया है। रचना की कालजयिता सिर्फ़ ख़ुद जीवित रहने में नहीं, उन रचना-पीढ़ियों को जन्म देने में है, जो अगले तमाम युग, भूगोलों और जीवनों में सर्जना नये उत्प्रेरण से अनेकानेक कालजयी कृतियों को रचती है। महाभारत में ऐसी उदारता, ऐसा लचीलापन और ऐसी निस्संगता है जो अपने अनुकूल ही नहीं, अपने विरुद्ध, रचना-संसारों को भी अर्थवान बना देती है। व्यास न तो रूढ़ि के पोषक हैं न उसके वाहक; उनके भीतर मानवता के प्रति ऐसी अपार राग-धारा तथा पारदर्शी दृष्टि और सृजन कौशल है, जो हर युग में मानवता विरोधी आवाज़, दुष्कृतियों और विलोमों से टक्कर लेने का पुरुषार्थ रखती और देती है। महाभारत के प्रवक्ता उग्रश्रवा का यह कहना सही है कि यहाँ वह सब है जो स्वर और व्यंजन के बीच निहित वाङ्मय में हो सकता है—इतनी विपुल ज्ञानराशि, भावराशि और विचार राशि को कौन ग्रहण करना न चाहेगा? पिछले पाँच हज़ार वर्षों से नागर और लोक में वह प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष और रिसकर आयी विविध अर्थवत्ता और प्राण-चेतना से साहित्य और कलाओं को अनुप्राणित करता रहा है। महाभारत से गृहीत और प्रेरित रचनाओं का एक विशाल सागर है जो उसके नित नये अर्थ खोलता है। वैसे भी, कौन सौभाग्यशाली देश नहीं चाहेगा—ऐसी अक्षय-रसा 'कामधेनु' को दुहना, उससे पोषण पाना और जीवन के गहन अर्थों में अपने समय, सोच और व्यंजना में उतरना और उतरते चले जाना....। महाभारत को कुछ लोग धर्म ग्रन्थ कहते हैं, पर उसके लिए धर्म का अर्थ 'मानवता' है। भला बताइए संसार में ऐसा कौन-सा धर्म ग्रन्थ है जो अपने ख़िलाफ़ एक भी आवाज़ सुन पाता है? ऐसी गुस्ताख़ी करने वाले कितने लोग सूली पर चढ़ाये गये, उन्हें ज़हर पिलाया गया और क़त्ल किया गया? पर हमारे पास क्या ऐसा एक भी उदाहरण है कि महाभारत के विरुद्ध रचने, कहने और बरतने के लिए किसी को दण्डित किया गया? फिर यह धर्म ग्रन्थ कैसे हुआ? यह काव्य तो स्वयं अपने भीतर विरोधों, विसंगतियों, विद्रूपताओं का ऐसा संसार रचता है कि आप उससे ज़्यादा क्या रचेंगे? एक महाप्राण रचना ऐसी ही होती है जहाँ प्रेम और वीभत्स एक साथ रह सकते हैं और हर एक को अपनी पात्रता और कामना के अनुरूप वह मिलता है जिससे वह अपने समय का सत्य अन्वेषित कर सके। संस्कृति ऐसे ही अनन्त स्रावों और टकरावों का नाम है, यह हमें महाभारत ने ही बताया है कि संस्कृति क्या होती है और कैसे रची जाती है? प्रतिष्ठित लेखक-मनीषी प्रभाकर श्रोत्रिय ने वर्षों की दूभर साधना से भारत में, और आसपास की दुनिया में, संस्कृत से लगाकर सभी भारतीय भाषाओं में महाभारत की वस्तु, सोच, प्रेरणा; यानि स्रोत से रची मुख्य रचनाओं पर इस ग्रन्थ में एक सृजनात्मक ऊर्जा से पकी भाषा में विचार-विवेचन किया है, यह जानते हुए भी कि महाभारत की 'दुनिया’ जो हज़ारों बाँहों में भी न समेटी जा सकी वह दो बाँहों में कैसे समेटी जायेगी?..... भारतीय ज्ञानपीठ अपने गौरवग्रन्थों की परम्परा में पाठकों को यह ग्रन्थ अर्पित करते हुए प्रसन्नता का अनुभव करता है।

प्रभाकर श्रोत्रिय (Prabhakar Shrotriya)

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