Ashok Mizaj Ki Chuninda Ghazalen

Ashok Mizaj Author
Hardbound
Hindi
97893879190802
2nd
2019
120
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अशोक 'मिज़ाज' की चुनिंदा ग़ज़लें - अशोक 'मिज़ाज' हिन्दी और उर्दू ग़ज़ल पर समान अधिकार रखने वाले वो ग़ज़लकार हैं जिन्होंने ग़ज़ल को आरम्भ से अब तक अपने अध्ययन और मनन के माध्यम से अपने दिल में ही नहीं वरन् अपनी आत्मा में उतार लिया है। वो उससे जुड़कर भी और अलग होकर भी ग़ज़ल को उससे आगे ले जाने की कामयाब कोशिश करते हैं। अशोक 'मिज़ाज' ने ग़ज़ल में नये-नये तजुर्बे किये हैं। उनकी भाषा और कहन की सहजता और सरलता के कारण उनकी ग़ज़लों में भरपूर सम्प्रेषण है। उनकी ग़ज़लें पाठकों के दिलो-दिमाग़ में घर कर जाती हैं और देर तक सोचने पर मजबूर करती हैं। प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह में वो हिन्दी ग़ज़ल की एक ऐसी सशक्त आवाज़ बनकर उभरे हैं जो अपने खट्टे-मीठे अनुभवों और सरोकारों के शेरों के माध्यम से अपनी अलग पहचान रखती है। उनकी ग़ज़लों का केनवास बहुत बड़ा है। विषयों की विविधता के बावजूद वो ग़ज़ल के सौन्दर्य, माधुर्य और बाँकपन को आहत नहीं होने देते। सच्ची ग़ज़ल वही है जो आज की भाषा में आज के कालखण्ड की बात करे और उसमें आज का भारत हो और भारतवासियों की मनःस्थिति का वर्णन हो। अशोक मिज़ाज की ग़ज़लें हमें आज के युग की तस्वीर दिखाती हैं। उदाहरण के लिए कुछ शेर प्रस्तुत हैं: मैं उस तरफ़ के लिए रोज़ पुल बनाता हूँ, कोई धमाका उसे रोज़ तोड़ देता है। मन्दिर बहुत हैं और बहुत सी हैं मस्जिदें, पूजा कहाँ-कहाँ है, इबादत कहाँ कहाँ? उधार लेके बना तो लिया है लेकिन अब, हमें किराये पे आधा मकान देना है। ये सारी सरहदें बन जायेंगी पुल देखना इक दिन, पुकारेगी कभी इन्सान को इन्सान की चाहत। अजीब लोग हैं, मस्जिद का रास्ता पूछो, पता बताते हैं अक्सर शराब ख़ाने का। दुनिया को बुरा कहना है हर हाल में लेकिन, दुनिया को हमें छोड़ के जाना भी नहीं है। ऐसा लगता है कि मैं तुझसे बिछड़ जाऊँगा, तेरी आँखों में भी सोने का हिरन आया है।—अनिरुद्ध सिन्हा

अशोक मिज़ाज (Ashok Mizaj)

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