अज्ञेय रचना संचयन (मैं वह धनु हूँ...) - सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' की समर्थ व सार्थक रचना सम्पदा से एक सोद्देश्य चयन है। भारतीय साहित्य के कालजयी रचनाकारों में अग्रगण्य अज्ञेय का रचना संसार हिन्दी का ऐश्वर्य है। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, आलोचना, यात्रा वृत्तान्त, डायरी, रिपोर्ताज़, संस्मरण, नाटक आदि विविध विधाओं में विपुल एवं विलक्षण लेखन किया है। वस्तुतः वे एक युगनिर्माता नेतृत्व शक्ति सम्पन्न रचनाकार रहे हैं। सर्जनान्वेषी सत्याग्रही सम्पादक के रूप में भी वे एक प्रतिमान बन गये हैं। व्यक्तित्व और कृतित्व की दृष्टि से अनुपमेय/अननुमेय अज्ञेय की प्रतिनिधि रचनाशीलता 'अज्ञेय रचना संचयन' में समाहित है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार और सम्पादक डॉ. कन्हैयालाल नन्दन ने अज्ञेय की शब्द साधना के उन पक्षों का चयन किया है, जिनसे अज्ञेय जैसे महत्त्वपूर्ण रचनाकार की एक परिपूर्ण छवि निर्मित होती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि विस्तार, गहराई और ऊँचाई की दृष्टि से संकलित रचनाएँ हिन्दी के इतिहास में अमरता प्राप्त कर चुकी हैं। अज्ञेय के शब्दों में, 'ऊपर ऊपर ऊपर ऊपर—बढ़ा चीरता चल दिङ्मण्डलः /अनथक पंखों की चोटों से नभ में एक मचा दे हलचल।' कविता के साथ गद्य की विभिन्न विधाओं का समुच्चय निश्चित रूप से पाठकों को अनुप्राणित करेगा। अज्ञेय-जन्मशती वर्ष के ऐतिहासिक अवसर पर 'अज्ञेय रचना संचयन' ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित रचनाकार 'अज्ञेय' की समग्र रचनाशीलता के पुनःपाठ की ओर पाठकों को उन्मुख करने में सक्षम होगा, ऐसा विश्वास है
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