चिन्ह-विज्ञान : उपादान और सांस्कृतिक सन्दर्भ -
'चिह्न-विज्ञान' के जन्मदाता स्विट्जरलैंड के प्रसिद्ध भाषाविद् फर्डिनेंड डि सैसोर (सन् 1857-1913) थे। उन्होंने यूनानी शब्द 'Semciology' के आधार पर 'Semiology' (यूनानी शब्द का चौथा अक्षर 'E' इसमें ग़ायब है) शब्द गढ़ा था चिह्न के व्यवस्थित अध्ययन (Systematic Study of the sign) से सम्बद्ध भाषिकी प्रणाली (linguistic method) के लिए हिन्दी में 'चिह्न-विज्ञान' शब्द काफ़ी सटीक प्रतीत होता है।
अमेरिकी भाषाविद् सी. एस. पीयर्स (सन् 1839-1914) सैसोर महोदय के समकालीन विचारक थे। किन्तु उन्होंने सैसोर के 'सैमिऑलोजी' शब्द के स्थान पर 'सैमिऑटिक्स' शब्द को अधिक उपयुक्त माना। तदनन्तर एक अन्य अमेरिकन विद्वान चॉर्ल्स मौरिस ने नूतन कल्पना का परिचय देने के लिए इसके लिए 'सैमिऑसिस' का प्रयोग किया।
पीअर गोइरॉड ने अपनी पुस्तक 'सैमिऑलोजी' में लिखा है कि 'सैमिऑटिक्स' शब्द एटलांटिक सागर के परे के क्षेत्रों में प्रयुक्त होता है और 'सैमिऑलोजी' शब्द योरुपीय देशों में भारत में चिह्न-विज्ञान के क्षेत्र में डॉ. हरजीत सिंह गिल ने विशेष ख्याति अर्जित की है। उन्होंने 'चिह-विज्ञान' के लिए 'सैमिऑटिक्स' (Semiotics) अंग्रेज़ी पर्याय को अधिक उपयुक्त माना है, क्योंकि उसमें विज्ञान की छवि अधिक झलकती है।
भारत में चिह्नों के उपादान किन-किन स्रोतों से मुख्य रूप में उपलब्ध होते हैं, उनका उल्लेख भी पुस्तक में यथास्थान कर दिया गया है। भारतीय चिन्तन और लोक-संस्कृति में विद्यमान चिह्नों के अध्ययन की वैज्ञानिक प्रणाली का उपयोग भी हमने कुछ भारतीय त्योहारों से जुड़ी परम्पराओं, लोक-कथाओं एवं थापों को आधार मानकर किया है।
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