व्यंग्य की सहज उपस्थिति के साथ ही आधुनिक व्यक्ति के जीवन-दर्शन की प्रौढ़ अभिव्यक्ति चल खुसरो घर आपने की कहानियों की वह विशेषताएँ हैं जो एकदम से ध्यान खींचती हैं। आधुनिकतावादियों के यहाँ शस्य की सतही मुद्राएँ तो विकृत भाव-भंगिमाओं के साथ मिल जाती हैं लेकिन उसमें सार्थक सघन व्यंग्य का अभाव होता है। दरअसल व्यंग्य जीवन के विद्रूप यथार्थ से उपजता है और इसे देखने-समझने कहने के लिए गहन अंतर्दृष्टि का होना अनिवार्य है। चल खुसरो घर आपने की कहानियों में प्रखर व्यंग्य के अचूक प्रहार देखे जा सकते हैं। चाहे 'मठाधीश' कहानी में आए साहित्यिक माफिया के सरगना हों या 'गाय' कहानी के रक्तशोषी सत्ता के केंद्र - सभी इस व्यंग्य की पहुँच में हैं। इसीलिए इसका वार तिलमिलाता है। विशेषकर 'गाय' में लेखिका ने पंचतंत्र - हितोपदेश सरीखी कालजयी कृतियों के संरचना-विधान का रचनात्मक उपयोग करके पशुओं जीव-जंतुओं के माध्यम से कथित लोकतंत्र यानी लूटतंत्र की पड़ताल की है ।
नारी मुक्ति की बयानबाजी से अलग हटकर इन कहानियों में नारी-जीवन के त्रासद स्वर भी मुखरित हुए हैं। सबीहा, लिलि, गुगली या चंदरमा-यह स्त्री के वे चेहरे हैं जो उपेक्षा, पीड़ा और वंचनाओं से बिंधे पड़े हैं। इनकी 'पूरी देह आँसू की धार' से बनी है और सामने जो भी पुरुष है वह जिस भी औरत को देखता है उस पर अपना पूरा हक समझता है। ऐसे में यह स्त्रियाँ 'तुम प्रेम नहीं कर सकतीं लिलि' कहानी की नायिका की तरह इस निष्कर्ष तक पहुँचती हैं कि 'अब वह प्रेम नहीं कर सकती किसी से। उसे तो अब सारे संबंध निबाहने भर हैं।' और यह मात्र संबंध-निर्वाह की नियति जिस गहरी करुणा को उत्पन्न करती है वही इन कहानियों का मर्म है।
आधुनिकतावादी फैशनेबुल मुहावरों से बचकर विभा रानी - इन कहानियों में आज के मनुष्य के संघर्ष और उसकी वेदना को जीवंत प्रसंगों के माध्यम से उजागर कर देती हैं और बेशक अपनी ओर से कुछ न कहकर यह काम लेखिका घटनाओं और पात्रों को संपादित करने देती हैं। इसीलिए यहाँ व्यर्थ के ब्यौरों या सब कुछ जानने की जड़ बौद्धिकता न होकर कथा रस से भरपूर कहानियाँ हैं।
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