प्रो. कृपाशंकर चौबे द्वारा सम्पादित यह किताब पूर्वोत्तर भारत की भाषाई विविधता और सकारात्मक पहचान से परिचित कराती है। इस किताब का महत्त्व इस बात में है कि यह पूर्वोत्तर के बारे में एकतरफा नकारात्मक प्रचार को काटती है। प्रो. चौबे ने पूर्वोत्तर की ज़मीन से जुड़े, उसकी मिट्टी की आर्द्रता को महसूस करनेवाले लेखकों की रचनाएँ इस पुस्तक में संकलित की हैं। इसलिए प्रवासी मानसिकता से नहीं, अपितु उस समाज के बीच से उठे हुए लेखकों ने वहाँ की भाषा, संस्कृति और समाज को देखा-परखा और व्याख्यायित किया है। वस्तुतः यह पुस्तक वह आईना है जिसमें पूर्वोत्तर के समाज और वहाँ की संस्कृति के अक्स को हू-ब-हू देखा जा सकता है -प्रो. चन्द्रकला पाण्डेय
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