तेजेन्द्र शर्मा उन कथाकारों में से हैं जो विदेश में रहते हुए भी भारतीय जीवन की सच्चाइयों से रू-ब-रू होते रहते हैं और कैंसर, देह की कीमत, एक ही रंग और ढिबरी टाइट जैसी कहानियों से बहुरेखीय यथार्थ का आकलन करते हुए कथा-क्षेत्र में नई पहचान बनाते हैं।
तेजेन्द्र शर्मा की अंतर्वस्तु विविध है तो शिल्प भी। सादगी में आश्चर्य है, वाचालता नहीं। तेजेन्द्र शर्मा 'लाउड' नहीं होते। मौन और शब्द का अर्थ समझते हैं। कैंसर तेजेन्द्र शर्मा की अर्थ-बहुल कहानी है। कैंसर के निहितार्थ अनेक हैं। वे कहानी लिख रहे हैं तो हड़बड़ी में नहीं हैं...! रेडिकल मैसेक्टमी। सपाट छाती। अंत में पूनम का प्रश्न है- 'मेरा पति मेरे कैंसर का इलाज तो दवा से करवाने की कोशिश कर सकता है, मगर जिस कैंसर ने उसे चारों ओर से जकड़ रखा है... क्या उसका भी कोई इलाज है?' इस कहानी के बीच में एक वाक्य है- 'रात आने का समय तो तय है। अब की बार डर रहे थे कि रात अपने साथ क्या-क्या लाने वाली है। कितनी लम्बी होगी यह रात। क्या इस रात के बाद का सवेरा देख पाएँगे?' यह कथन रूपक से अधिक है। लम्बी रात वह कालखंड है जो एक है और अनंत है।
तेजेन्द्र शर्मा की कहानियाँ जीवनधर्मी हैं। वे जीवन के गहरे अंधकार में धँसती हैं और जीवन के लिए एक मूल्यवान सत्य बचा लेती हैं। कहानी तेजेन्द्र शर्मा के लिए समय को समय के पार देखने की प्रेरणा देती है। वे वास्तविकता का छद्म नहीं रचते। आभासी यथार्थ के दौर में वे गझिन सूक्ष्म यथार्थ को व्यक्त करते हैं।
तेजेन्द्र शर्मा की गिनी-चुनी कहानियाँ भी उन्हें महत्त्वपूर्ण कोटि में जगह देने के लिए काफ़ी हैं।फ़िलहाल वे अपने ढंग के अकेले हैं और बग़ैर किसी तरह की पैरवी के एकाधिक बार पढ़े जाने के योग्य हैं।
- परमानंद श्रीवास्तव
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