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Doosari Duniya

Hardbound
Hindi
9789387889552
1st
2018
360
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₹750.00

बोलना, निर्मल वर्मा के वहाँ कथन (स्टेटमेंट) नहीं है। वक्ता का ज़ोर बावजूद इसके कि उसमें ‘सच’ और ‘झूठ’ और ‘पाप’ जैसे मूल्याविष्ट प्रत्यय बार-बार आते हैं, बोले हुए की ‘टुथ-वैल्यू’ पर उतना नहीं, जितना खुद को ‘उच्चरित’ करने पर है...दरअसल उनके पात्र भाषा से तदात्म हस्तियाँ हैं। भाषा के जल में उठती हुई लहरें। भाषा में उत्पन्न नये अर्थ...वे साँचे हैं जो अब नहीं हैं लेकिन जिनके कभी होने का पता हमें उस भाषा से चलता है जो इन साँचों में ढली है, जो हमारे सामने है...यह भाषा अपने ‘टैक्सचर’ की पर्याप्त प्रांजलता के बावजूद अपने ‘स्ट्रक्चर’ में अत्यन्त अर्थगर्भी और जटिल है: लगभग एक कूट की भाँति...

निर्मल वर्मा का हर पात्र कथा के एकान्त में एक ‘देह’ है: एक गुप्तचर की तरह अपने कोड (केट) में विचित्र सन्देश देती हुई; ‘अपने अतीत, अपनी यातनाओं के बारे में’ निर्मल वर्मा स्वयं किसी तरह की तर्कणा या परिपृच्छा से उसे पुकार कर या झिंझोड़ कर उसका एकान्त भंग नहीं करते। वे इस कूटबद्ध देह (वाक्य) के लिए एक अवकाश रचते हैं अपनी कथा के माध्यम से; ऐसा ‘घना सन्नाटा’ जहाँ इस देह के ‘विचित्र सन्देश’ ग्रहण किए जा सकें, जहाँ उसकी ‘गुप्त गवाही का गवाह’ हुआ जा सके...उनके यहाँ मनुष्य का सत्व भाषा में रूपायित है।

- मदन सोनी

निर्मल वर्मा (Nirmal Verma )

निर्मल वर्मा (1929-2005) भारतीय मनीषा की उस उज्ज्वल परम्परा के प्रतीक-पुरुष हैं, जिनके जीवन में कर्म, चिन्तन और आस्था के बीच कोई फाँक नहीं रह जाती। कला का मर्म जीवन का सत्य बन जाता है और आस्था की चुनौत

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