गोपालदास 'नीरज' को हिन्दी कवि-सम्मेलनों में बच्चन के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय कवि होने का गौरव प्राप्त रहा है। 'कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे' और 'देखती ही न दर्पण रहो प्राण तुम, प्यार का यह महूरत निकल जाएगा' जैसे गीतों ने नीरज को प्रत्येक काव्य-प्रेमी घर का एक मशहूर नाम बना दिया है। स्थिति यह है कि आज भी नीरज की लोकप्रियता का स्पर्श करनेवाला कोई कवि भारतीय काव्य-मंच पर मौजूद नहीं है। उन्होंने जन सामान्य के हृदय का स्पर्श करने वाले गीत लिखे ही नहीं, उन्हें मर्मस्पर्शी वाणी में प्रस्तुत भी किया। प्रेम की सहज कोमल अनुभूतियों को सामाजिकता का जामा पहनाकर उन्होंने काव्य-प्रेमियों के जीवन में हलचल मचा दी। नीरज का हृदयस्पर्शी काव्य-पाठ आज एक उत्कृष्ट मानक का रूप धारण कर चुका है। लगभग पचपन वर्ष की काव्य साधना के दीर्घकाल में नीरज ने दर्जन से ज्यादा पुस्तकों का सृजन किया और तीन खण्डों में - 'नीरज रचनावली' का प्रकाशन भी हुआ। आज भी नीरज मंच के साथ-साथ काव्य लेखन की दिशा में निरन्तर सक्रिय हैं।
वास्तविकता यह है कि गोपालदास नीरज को पढ़ना और सुनना काव्य-रसिकों के लिए एक अनुभव है।
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