निबन्धों की दुनिया - सुमित्रानन्दन पन्त -
हिन्दी जगत सुमित्रानन्दन पन्त के गद्य से प्रायः कम परिचित रहा है। पन्तजी ने अपने अनेक काव्य संग्रहों की लम्बी-लम्बी भूमिकाएँ लिखी हैं 'पल्लव' की भूमिका- 'प्रवेश' को तो छायावाद का घोषणापत्र कहा गया है। उन्होंने अनेक आलोचनात्मक निबन्ध लिखे हैं। वार्ताएँ और अभिभाषण दिये हैं। उनकी कुछ कहानियाँ और उपन्यास भी मिलते हैं। इन सबसे ये अपने समकालीन जयशंकर प्रसाद या सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' के समान कवि-आलोचक या कवि-कथाकार ठहराये जायें या न ठहराये जायें पर उपर्युक्त भूमिकाओं एवं निबन्धों में इनकी सूक्ष्म पर्यवेक्षण दृष्टि तथा आलोचना क्षमता का परिचय अवश्य मिलता है। कथनीय है कि सुमित्रानन्दन पन्त ने अपने समय की समस्याओं, वाद-विवादों, अगली पीढ़ी के कवियों पर भी अपनी बेबाक राय दी है। हिन्दी कविता में 'राष्ट्रीयता की भावना' अथवा 'राष्ट्रवाद की प्रवृत्ति' जैसे विषय हो अथवा 'हिन्दी-उर्दू विवाद' या खड़ी बोली से समन्वित 'व्यापक स्वरूप वाली हिन्दी भाषा' इन सब पर पन्त जी के विचार महत्त्वपूर्ण हैं। राष्ट्रीयता की प्रवृत्ति हो या राष्ट्रभाषा हिन्दी-इन विषयों पर वे संकीर्ण या कट्टर दृष्टिकोण नहीं अपनाते। वे व्यापक फलक पर अपने विचार प्रकट करते हैं। उन्होंने अपने समय की खड़ी बोली हिन्दी में हो रही काव्यरचना की सूक्ष्म विवेचना की है। कविता में आ रहे नवीन शब्द प्रयोग, ध्वनि-सजगता, चित्रमयता, लाक्षणिकता, सांगीतिकता आदि का अन्तर्दृष्टि सम्पन्न विवेचन किया है तो दूसरी ओर प्रकृति की रहस्यमयता के सहज स्वाभाविक चित्रों का उद्घाटन भी। यह सब छायावादी कविता को विशिष्ट बनाते हैं। इसे पहले-पहल पन्त जी ने पकड़ा। छायावाद के बाद की कविता पर भी उनकी पैनी दृष्टि रही है। उनके निबन्धों में अपने समसामयिक रचनाकारों बच्चन, नरेन्द्र शर्मा आदि पर की गयी टिप्पणियाँ पर्याप्त महत्त्वपूर्ण हैं-इन पर प्रायः व्यापक हिन्दी पाठक वर्ग की दृष्टि नहीं गयी है। प्रस्तुत संकलन सुमित्रानन्दन पन्त के इसी प्रकार के आलोचनात्मक निबन्धों-टिप्पणियों का संग्रह है जिससे उनका निबन्धकार एवं कवि-चिन्तक रूप उभरकर सामने आता है।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review