जीवंत साहित्य (अंग्रेज़ी में लिविंग लिटरेचर) अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक 'आदान-प्रदान तथा भारतीय प्रकाशन के इतिहास में एक अद्वितीय पुस्तक है। यह उस सार्थक मौजूदा कार्यक्रम का प्रतिफलन है जिसे मक्स म्युलर भवन तथा हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय के दक्षिण एशिया संस्थान के दिल्ली कार्यालयों ने सम्मिलित रूप से परिकल्पित किया और जो भारतीय तथा जर्मन लेखकों और अनुवादकों की सक्रिय भागीदारी से ही संभव हो पाया। इस संकलन में मूल तथा अनुवादों में वे रचनाएँ अथवा उनके अंश प्रस्तुत किए जा रहे हैं जिन्हें भारतीय तथा जर्मन लेखकों एवं अनुवादकों ने मक्स म्युलर भवन की दिल्ली शाखा में समुत्सुक श्रोताओं के सामने समय-समय पर पढ़ा था।
यह संग्रह न तो संपूर्ण है और न पर्याप्त-एक ऐसा संकलन जिसमें मात्र आंशिक रूप से हिंदी, जर्मन, कन्नड, उड़िया, मराठी, डोगरी, पंजाबी, बांग्ला, उर्दू तथा मैथिली साहित्यों का ही प्रतिनिधित्व हो वह ऐसा दंभ नहीं कर सकता, किंतु इसमें इन भाषाओं में लिख रहे कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा संभावना संपन्न रचनाकारों से मुकाबला किया जा सकता है। कहानियाँ, कविताएँ और उपन्यास अंश कंधे से कंधा मिलाए हुए मौजूद हैं। भारतीय भाषाओं • और जर्मन में लिखे गए साहित्य एक-दूसरे के सामने हैं। साहित्यिक संस्कृतियाँ तथा वातावरण आपस में समझाइश की कोशिश कर रहे हैं। इस सीमित संकलन में भी कई अलग आवाजें, शैलियाँ और लक्ष्य आ गए हैं।
जीवंत साहित्य के पीछे दो मौलिक अवधारणाएँ हैं जिसे भारतीय साहित्य के रूप में जाना जाता है वह मूलतः भारतीय भाषाओं में लिखा जाता है और उसके तथा जर्मन सरीखी विदेशी भाषा के बीच साहित्यिक आदान-प्रदान यथासंभव सीधे होना चाहिए, अंग्रेज़ी की मध्यस्थता से नहीं। यह उस महान भाषा की उपादेयता की अवमानना नहीं है बल्कि सिर्फ इस तथ्य पर बल देना है कि अनुवाद सबसे प्रामाणिक तभी होते हैं, जब वे एक भाषा से दूसरी में सीधे किए जाएँ जैसा कि पाठक देखेंगे, ऐसे श्रोताओं पाठकों के लिए अंग्रेजी अनुवाद भी उपलब्ध किए गए हैं जो न जर्मन जानते हैं और न कोई विशेष भारतीय भाषा। इस दृष्टि से जीवंत साहित्य मूल तथा अनुवाद में जर्मन तथा भारतीय साहित्यों का एक संकलन बन जाता है और निस्संदेह उसे अनुवाद की चुनौती-भरी कला की कार्य पाठ्य पुस्तक के रूप में भी पढ़ा जा सकता है। तुलनात्मक साहित्य के अध्येताओं के लिए भी वह एक दिलचस्प उपक्रम हो सकता है। कुछ अत्यंत विशिष्ट अनुवादकों के परिश्रम के नमूनों वाला यह संकलन साहित्यों और भाषाओं की बाबेल की मीनार जैसा बन गया है जिस पर एक जीवंत और प्राणवान घटना की तरह सर्जकों, आलोचकों, आस्वादकों और पाठकों के बीच चर्चा तथा बहस-मुबाहिसा होना सुनिश्चित है।
विष्णु खरे (Vishnu Khare )
विष्णु खरे का जन्म मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव छिंदवाड़ा में हुआ था । उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा इंदौर में पायी थी । बाद में उन्होंने 1963 में क्रिश्चियन कालेज से अंग्रेजी साहित्य में एमए
विष्णु खरे का जन्म मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव छिंदवाड़ा में हुआ था । उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा इंदौर में पायी थी । बाद में उन्होंने 1963 में क्रिश्चियन कालेज से अंग्रेजी साहित्य में एमए